Friday 12 April 2013

हमें राईट-टू-रिकोल और ज्यूरी-सिस्टम ये कानून इतने अति-आवश्यक (अर्जंट) क्यूँ हैं ? भ्रष्टाचार से हमें क्या फरक पड़ता है ?


राईट-टू-रिकोल और ज्यूरी-सिस्टम हमारी सबसे पेहली आवश्यकता है | समाज में, संभव युद्ध में भारत को बहारी देशों की सेना और आम नागरिकों द्वारा होने वाले खून-खराबे, बलात्कार आदि को रोकने के लिए ये कानून बहुत जरुरी हैं |
और इससे काफी अतिरिक्त फायदे हैं, जैसे की इससे समाज के उच्च वर्ग द्वारा खून, बलात्कार और शोषण आदि रोक सकते हैं, आदि, आदि |

अब इसका जवाब देने से पहले मैं इस प्रश्न को विस्तार से केहता हूँ – 

(1) काफी सारे लोग पूछते हैं कि हमें राईट-टू-रिकोल और ज्यूरी-सिस्टम ये दोनो कानून इतने अति-आवश्यक (अर्जंट) क्यूँ हैं ?

(2) भला भ्रष्टाचार से क्या फर्क पड़ता है ? जो हो रहा है वो ठीक ही तो चल रहा है ? सब लोग पैसे कमाना चाहते हैं, इसीलिए भ्रष्टाचार हो रहा है | अगर में भी मंत्री या जज होता तो शायद मुझे भी भ्रष्टाचार करना पड़ता |

(3) हम सिर्फ हिंदुत्व को बचा ले, देश भी अपने आप बच जायेगा |

(4) हमें सबसे पहले राईट-टू-रिकोल और ज्यूरी-सिस्टम द्वारा भारत की सुरक्षा या भारतीय सैन्य को मजबूत करना क्यूँ जरुरी है ?

विषय-सूची

(1) राईट-टू-रिकोल, जनमत के बहुमत से जेल में कारावास या फांसी और ज्यूरी-सिस्टम ये तीन कानून के द्वारा ही भारत में से भ्रष्टाचार कम हो सकता है | उनके अलावा और कोई तरीका नहीं है |
(2) अब हमें यह समझना पड़ेगा की भ्रष्टाचार बढ़ने से भारतीय सेना, भारतीय वायू सेना और भारतीय-नौसेना की ताकत कैसे काम होती है |
(3) कौन से टैक्स के कानूनों द्वारा हम भारतीय संरक्षण और सैन्य के लिए अधिकतम राशि जमा कर सकते हैं | क्या भारत के अमीरों पर ज्यादा टैक्स डाल कर भारतीय सेना को मजबूत करना जरुरी है ? क्या फर्क पड़ता है अगर भारत की सेना कमजोर है |
(4) अब देखते हैं कि भ्रष्टाचार के चलते भारत की तकनीकी क्षमता और कौशल किस तरह से कमजोर होती है और फिर वो भारतीय-सैन्य के लिए हथियार बनाने में कैसे बाधा-रूप है ?
(5) भारतीय सेना, भारतीय वायू-सेना और भारतीय-नौसेना की ताकत काम होने से भारतीय सेना, भारतीय वायू-सेना और भारतीय-नौसेना रूपी दीवार टूटने की संभावना है या नहीं ? है तो कितनी है ?
(6) इसकी क्या गारंटी है कि पाकिस्तान की सेना के पीछे पाकिस्तान के आम-नागरिक भारत में घूस जायेंगे और फिर वो भारत में लूट-पाट, खून और बलात्कार करेंगे ? यह कुछ ज्यादा चरम (Extreme) स्थिति है |
(7) क्या फर्क पड़ता है अगर चीन या अमेरिका की सेना भारत को ले लेती है और भारत में चीन या अमेरिका का राज चलता है ? भारत की सरकार ऐसे ही निक्कम्मी है तो भारत अमेरिका या चीन के हाथों में चला जायेगा, तो क्या फर्क पड़ेगा ?
(8) पहले क्या करना चाहिए ? पाकिस्तान और बंग्लादेश के भेड़ियों से अपनी बहन-बेटियों की रक्षा करनी चाहिए या स्वदेशी तेल-साबुन बेचने चाहिए, सिर्फ हिंदुत्व की बाते करनी चाहिए और हिंदुत्व में से आत्म-सुरक्षा का मुद्दा निकाल देना चाहिए, व्यक्ति पूजा करनी चाहिए ?.
(9) कौन-कौन लोगों को भारत में राईट-टू-रिकोल और ज्यूरी-सिस्टम इन कानूनों की आवश्यकता नहीं है ?

(1) राईट-टू-रिकोल, जनमत के बहुमत से जेल में कारावास या फांसी और ज्यूरी-सिस्टम ये तीन कानून के द्वारा ही भारत में से भ्रष्टाचार कम हो सकता है ; उनके अलावा और कोई तरीका नहीं है |

इस के लिए आपको हमारे बाकी सारे लेख और विडियो क्लिप देखने पड़ेंगे | हमारी पूरी आंदोलन इसी के लिए है | अगर आपको यह नहीं पता तो पहले आपको हमारे बाकी सारे लेख पढ़ने पडेंगे और विडियो क्लिप देखने पड़ेंगे | वो सब पढ़ने और देखने के बाद आप यह लेख पढ़िए |

(2) अब हमें यह समझना पड़ेगा की भ्रष्टाचार बढ़ने से भारतीय सेना, भारतीय वायू-सेना और भारतीय-नौसेना की ताकत कैसे काम होती है |

भ्रष्टाचार बढ़ने से सबसे पहले, विदेशी कम्पनियाँ भारत के सांसद और प्रधानमंत्री को खरीदना शुरू करती हैं | विदेशी कम्पनियाँ, सांसदों से सीधे भारतीय सेना, भारतीय वायू-सेना और भारतीय-नौसेना की ताकत कम करने के लिए नहीं कहती हैं | वे उनको विदेशों से हथियार खरीदने के लिए प्रोत्साहन देते हैं और आधी-अधूरी जानकारी देते हैं कि विदेशों के हथियार भारत की तुलना में बेहतर गुणवत्ता के हैं | ये आधी-अधूरी जानकारी है | विदेशी कम्पनियाँ भारत के सांसदों को यह नहीं बताती कि युद्ध के समय में जब भारत को विदेशी हथियारों और उनके स्पेर-पार्ट (अतिरिक्त पुर्जों) की जरुरत होगी, तो हम हथियारों की कीमत बढा देंगे या उनकी आपूर्ति ही बंद कर देंगे और ब्लैक-मैल करेंगे और भारत की खनिज सम्पति पर नाटो देशों की विदेशी कंपनिओ को देने के लिए दबाव डालेंगे |
जब तक सांसदों को यह सब जानकारी मिलेगी, तब तक बहुत देर हो जाती है | जैसे कि भारत के साथ हुआ है | मेंरे हिसाब से भारत के पिछले ६५ साल में जितने भी सांसद आये सारे महा-मूर्ख थे | हो सकता है उनमें से कुछ २-४ की नीयत अच्छी हो लेकिन वो निकले तो महा-मूर्ख | इन सबमें सबसे पहला नाम है इंदिरा गाँधी का | इंदिरा गाँधी का नाम इसलिए कि उसने स्वदेशी हथियार बनाने की पहल की लेकिन यह ध्यान नहीं रखा कि कोई ऐसी प्रणाली विकसित की जाए की आने वाला अगला प्रधान-मंत्री अमेरिका या रसिया के हाथ की कठपुतली ना बन जाए | और उसने सारे तानाशाह वाले कदम लिए | इस लिए सभी लोग उनके खिलाफ हो गए | वो सिर्फ एक मूर्ख तानाशाह थी |

कुछ अपवाद मामलों में जब सांसद या हमारे जैसे कुछ कार्यकर्ता स्वदेशी हथियार उत्पादन पर जोर देते हैं, तो विदेशी कम्पनियाँ सांसदों को मूर्ख बनाती हैं या खरीद लेती हैं और उनको हथियार भारत में एसेम्बल (जोड़ने) करने के लिए कहती हैं | फिर वो सांसद बिकाऊ मीडिया (पेड-मीडिया) के साथ मिलकर भारत में यह अफवाह फैलाते हैं कि हमने फलाना-धिकना स्वदेशी बनाया, स्वदेशी फाईटर विमान बनाया, आदि | अरे भाई, उनको पूछो कि संख्या कितनी है तो कहेंगे ५ या १० | स्वदेशी का मतलब होता है १००% भारतीय | उनमें स्क्रू से लेकर सेमी-कंडक्टर और सेटेलाईट टेक्नोलोगी सब १००% भारतीय होना चाहिए |

भ्रष्ट भारत सरकार ने तो भारत में सेमी-कंडक्टर और सेटेलाईट टेक्नोलोगी विकसित करने ही नहीं दी है | तो क्या सरकार अपने पिछवाड़े में से सेमी-कंडक्टर और सेटेलाईट टेक्नोलोगी लाए है | संपूर्ण स्वदेशी का मतलब होता है कि भारत नमूना (सैम्पल) लड़ाकू विमान बनाने के बाद ६ महीने में २०००-३००० लड़ाकू विमान उत्पादन कर डाले | क्या भारत के पास स्वदेशी २०००-३००० युद्ध जहाज हैं और क्या युद्ध की स्थिति में सरकार ४०००-५००० लड़ाकू हवाई-विमान बना सकती है ? बिलकुल नहीं | युद्ध के समय में, भारत को नाटो देश और रूस से भीख मांगनी पड़ेगी |

हमें हमारी वर्तमान परिथिति में, हर एक जिल्ला जिसकी आबादी १० लाख से ऊपर है वहाँ पर एक भारतीय वायू-सेना का अड्डा, छोटी सेना चाहिए | क्या हमारे पास भारत में १००० भारतीय वायू-सेना के अड्डे हैं ? नहीं | क्या हम युद्ध की स्थिति में हा जिल्ले जिसके आबादी १० लाख से ऊपर है, वहाँ हम स्वदेशी युद्ध-हवाई-जहाज, तोप, टैंक, आदि का २-३ दिन में उत्पादन कर सकते है ? बिलकुल नहीं | क्या हम १ दिन में लड़ाकू हवाई-जहाज, लड़ाकू टेंक, मिसाईल आदि के अतिरिक्त पुर्जे (स्पेर पार्ट) और उनका पूरा उत्पादन कर सकते हैं ? बिलकुल नहीं | हमारी कोई हैसियत नहीं है कि आज हम हथियारों का उत्पादन कर सकें |

१९९९ के कारगिल युद्ध में भारत की सेना पाकिस्तान की सेना को पीछे नहीं धकेल पा रही थी | भारत के सैनिक ज्यादा संख्या में शहीद हो रह थे | फिर भारत के प्रधान-मंत्री अटल बिहारी वाजपई ने नाटो देशों से लेसर-मार्गदर्शित (Laser Guided) बोम्ब की भीख मांगी | फिर भारत ने विदेशी इन्स्योरंस कंपनियो को भारत में व्यापर करने की मंजूरी दी और बाद में नाटो ने लेसर-मार्गदर्शित (Laser Guided) बोम्ब भीख में दिए | फिर उन लेसर-मार्गदर्शित (Laser Guided) बोम्ब की मदद से भारत ने पाकिस्तान के काफी सारे सैनिको को मार डाला | फिर नाटो ने पाकिस्तान को पीछे हट जाने के लिए कहा और ना मानने की स्थिति में भारत को और हथियार देंगे इस तरह से धमकाया | फिर जब पाकिस्तान पीछे हट जाने के लिए मान गया, तो भारत को सुरक्षित रास्ता (Safe Passage) देने के लिए कहा | अगर भारत यह बात नहीं मानता, तो नाटो भारत को लेसर-मार्गदर्शित (Laser Guided) बोम्ब और अन्य हथियार की आपूर्ति बंद कर देगा और पाकिस्तान को दुगने हथियार देगा --- इस तरह से नाटो ने भारत को धमकाया | फिर भारत को सुरक्षित रास्ता (Safe Passage) देना पड़ा | इस तरह से भारत और पाकिस्तान दोनों कारगिल का युद्ध हार गए और नाटो देशों की विजय हुई |

(3) कौन से टैक्स के कानूनों द्वारा हम भारतीय संरक्षण और सैन्य के लिए अधिकतम राशि जमा कर सकते हैं ? क्या भारत के अमीरों पर ज्यादा टैक्स डाल कर भारतीय सेना को मजबूत करना जरुरी है ? क्या फर्क पड़ता है अगर भारत की सेना कमजोर है ?

हथियारों को उत्पादन बढ़ाने के लिए हमें बहुत सारी घन-राशि चाहिए जो केवल और केवल टैक्स लगाने के माध्यम से ही आ सकती है, उपयोगकर्ता शुल्क (user-charges) के द्वारा नहीं | तो ऐसा कौन सा टैक्स का माध्यम है जिसके द्वारा समाज को कम से कम हानि (नुकसान) हो और हम भारत की सुरक्षा और सेना के लिए जरूरी घन-राशि इकट्ठी कर सकते हैं ?

कई तरह के कर होते है जैसे कि बिक्री कर (sales tax), मूल्य पर जुड़ने वाला कर (value added tax), सेवा कर (service tax), उत्पाद शुल्क (excise), सीमा शुल्क (customs), आयकर (income tax), संपत्ति कर (wealth tax), विरासत कर (inheritance tax) आदि |
प्रतिगामी कर (regressive tax; जो व्यक्ति की आय बढ़ने पर कर और व्यक्ति की आय का अनुपात कम होता है) जैसे कि बिक्री कर (sales tax), मान कर (value added tax), सेवा कर (service tax), उत्पाद शुल्क (excise) अमीर लोगों की तुलना में गरीब लोगों पर भारी बोझ डालते हैं | गैर-प्रतिगामी (non-regressive) कर जैसे कि आयकर (income tax), संपत्ति कर (wealth tax), विरासत कर (inheritance tax) अमीर और गरीब दोनों पर डाले गए गए कर (tax) का स्तर समान करते है | इसी लिए अगर देश को खड़ा करने के लिए भारी धन-राशि की आवश्यकता हो तो, संपत्ति कर (wealth tax), विरासत कर (inheritance tax) जैसे कर लागू करने पड़ेंगे और आयकर (income tax) को सुधारना पड़ेगा | वर्तमान कानून में ऐसे कई सारे कानून और धाराएं हैं, जो गरीब और मध्यम वर्ग के नागरिकों के ऊपर बोझ बढाती हैं, जैसे कि सेज (SEZ) में होने वाली आय पर आयकर (income tax) नहीं लगता और कुछ परियोजनाएं जैसे की बुनियादी ढांचे (infrastructure) ऐसी परियोजनाओं के द्वारा होने वाली आय पर भी कोई कर नहीं लगता | और ऐसे प्रतिगामी कर (regressive tax) आम गरीब और मध्यम वर्गीय नागरिकों के ऊपर कर का बोझ बढ़ाते हैं, इसलिए इन्हें हटाना जरुरी है | संपत्ति कर (wealth tax), विरासत कर (inheritance tax) आदि कानून के ऊपर विस्तार से जानकारी यह मुफ्त ई-बुक के अध्याय २५ में है (www.prajaadheenshasan.wordpress.com)

अगर कोई कर-कानूनों और सेना और देश की सुरक्षा का इतिहास देखे, तो आप को पता चलेगा कि उसी देश की सेना शक्तिशाली हो सकती है जहां पर संपत्ति कर (wealth tax), विरासत कर (inheritance tax) है | भारत में संपत्ति कर (wealth tax) और विरासत कर (inheritance tax) लगभग शून्य के आस-पास है और उनकी कर-वसूली बहुत कमजोर है तो इसे मजबूत करना चाहिए, उनकी प्रक्रिया में सधार करके |

प्रतिगामी कर (regressive tax) गरीब नागरिकों के ऊपर बोझ बढाती है और उनकी की बचत खतम हो जाती है | इससे गरीब नागरिक अपने संतानों को शारीरिक रूप से मजबूत और शिक्षित करके भारत की सेना के लिए भावी सैनिक नहीं दे पाएँगे | इसी लिए प्रतिगामी कर (regressive tax) जड़-मूल से खतम होना चाहिए |

बिकाऊ अर्थशास्त्री (पैड-अर्थशास्त्रि), बिकाऊ मीडिया (पैड-मीडिया) आदि मूल्य पर जुड़ने वाला कर (value added tax), उत्पाद शुल्क (excise) आदि कर-कानूनों पर जोर देते हैं और संपत्ति कर (wealth tax), विरासत कर (inheritance tax) का विरोध करते हैं और सेज (SEZ) में होने वाली आय पर कोई भी कर ना लगने वाले कर का समर्थन करते हैं |

भारत को स्वदेशी हथियार बनाने के लिए सबसे पहले प्रभावशाली संपत्ति कर (Wealth Tax) और विरासत कर (Inheritance Tax) की प्रक्रियाएँ भारतीय राजपत्र में डालनी पड़ेंगी | उसके बिना, भारत के आम नागरिकों के ऊपर टैक्स डाल कर भारत की सेना खड़ा करना संभव ही नहीं है क्यूंकि भारत के गरीब और माध्यम वर्ग के नागरिकों के पास इतना पैसा ही नहीं है | और भ्रष्टाचार के चलते कोई भी सांसद संपत्ति कर (Wealth Tax) और विरासत कर (Inheritance Tax) की बात ही नहीं करेगा क्यूंकि ये दोनों कर (टैक्स) भारत और विदेशी दोनों अमीरों के खिलाफ हैं और संपत्ति कर (Wealth Tax) और विरासत कर (Inheritance Tax) आने से काफी सारे सांसदों के ऊपर टैक्स बढ़ जायेगा जो पहले से काफी अमीर है |

(4) अब देखते हैं कि भ्रष्टाचार के चलते भारत की तकनीकी क्षमता और कौशल किस तरह से कमजोर होती है और फिर वो भारतीय-सैन्य के लिए हथियार बनाने में कैसे बाधा-रूप है ?

भारत के इंजीनियर जिन कारखानों में गैर-हथियार के उच्च तकनीकी वाले सामान बनाते हैं, वो असल में हथियार बनाने के लिए प्रशिक्षण मैदान हैं | हथियार बनाने के लिए अन्य गैर-हथियार उत्पाद की तुलना में अधिक सतर्कता या यथार्थता (दुरुस्ती) (precision) की आवश्यकता होती है, क्योंकि युद्ध जैसी स्थितियों में परीक्षण करने का अवसर बहुत काम मिलता है | इंजीनियरों को इतनी सतर्कता के साथ हथियार का उत्पादन करना पड़ता है की वो पहले ही वास्तविक युद्ध के उपयोग में विफल ना हो जाये | ऐसे हथियार या गैर-हथियार उच्च तकनिकी सामग्री जो पहले ही वास्तविक युद्ध के उपयोग में विफल ना हो उनको बनाने के लिए बहुत ही ज्यादा अनुभवी इंजीनियर चाहिए जो ठंडे और शांत मन से, बिना कोई तनाव के बिना काम कर सकें | जितने ज्यादा छोटे या बडे स्तर के स्वदेशी उच्च तकनिकी के कारखाने हमारे आस-पास होंगे, उतने ज्यादा अच्छे और प्रशिक्षित इंजीनियर हमें मिलेंगे और उनकी तकनीकी कौशल हमें भविष्य में भारतीय-सेना के लिए हथियार के उत्पादन में काम आएंगे | रोज-बरोज के हमारी जरुरत की छोटी-छोटी चीजें बनाने वाले कारखाने भी तकनीकी कौशल बढ़ाते हैं और वही तकनीकी कौशल बाद में भारतीय-सेना के लिए हथियार के उत्पादन में काम आएगी |

इसलिए हमें ऐसे कानून चाहिए जिनके द्वारा सभी तरह के कारखाने और उसे चलाने वाले उनके मालिकों को कम से कम बाधा हो और शांत मन से कोई भी तनाव के बिना काम कर सकें | हम भारत का इतिहास देखें, तो भारत में पिछले ६५ साल में तकनीकी (इंजीनियरिंग) क्षेत्र में बहुत काम अनुसंधान और विकास (Research and Development) हुआ है |

लगभग हर कारखाने के मालिक के ऊपर असली या नकली प्रतियोगी द्वारा लगाये-गए कोर्ट के विवाद चल रहै हैं | यह विवाद पार्टनर (भागीदारों) के बीच मुनाफा / संपत्ति को लेकर या मजदूरों द्वारा मजदूरी या पगार को लेकर, काम के घंटों को लेकर कुछ भी हो सकता है | ऐसे नक़ली (जाली) या असली विवादों को गंभीरता से लेना अति-आवश्यक है |

उदाहरण के लिए मन लीजिए कि कोई बहुत बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी या भारतीय कंपनी कोई एक क्षेत्र में अपना व्यवसाय कर रही है | और कोई छोटी कंपनी का मालिक वही क्षेत्र में अपना व्यवसाय शुरू करता है | अब बड़ी कंपनी का मालिक मजदूर संघ के नेता (Labor Union Leader) को घूस देकर या अन्य तरह से दबाव डाल कर या कोई अन्य सरकारी अफसर जैसे भ्रष्ट बिक्री कर (सेल्स-टैक्स) अफसर, भ्रष्ट पर्यवरण (Environment, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) अफसर, भ्रष्ट उत्पाद कर (Excise tax) अफसर को घूस देकर छोटी कंपनियो के खिलाफ झूठा (नकली, जाली) कोर्ट-विवाद शुरू करते हैं और छोटी फैक्ट्री के मालिकों को इतना परेशां करते हैं, जब तक वो अपना व्यवसाय बंद ना कर दे या बड़ी कंपनी के साथ साझेदारी ना कर ले | झूठा (नकली, जाली) कोर्ट-विवाद बहुत बड़ा शक्तिशाली साधन है जिसके द्वारा बड़े व्यापारी या कंपनियो को छोटे व्यापारी या कंपनियो को मारने में या नियंत्रण करने में या विकास को रोकने में मदद मिलती है | और यह पता लगाना के लिए कि कोर्ट-विवाद झूठा है या सच्चा, बहुत गहराई से निरिक्षण की आवश्यकता होती है | और फिर बाद में, ये निर्णय लिया जा सके की विवाद का समाधान कैसे करना है | न्यायालय या ट्रिब्यूनल या कोर्ट या जो भी कहो वो जगह या प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के दो या दो से अधिक दलों के विवादों के बीच विवाद पर फैसला होता है |

तो ऐसा तरीका कौन सा है जिसके द्वारा झूठा (नकली, जाली) कोर्ट-विवाद कम से कम या न्यूनतम क्षति पहुंचाए और हमें सबसे तेज और सबसे कम अनुचित (उचित) फैसला लाने के लिए कौन सा तरीका इस्तमाल करना चाहिए | इसके लिए हम जज-सिस्टम के बदले ज्यूरी-सिस्टम का इस्तमाल करने का प्रस्ताव करते हैं | जूरी प्रणाली में 12 आम-नागरिकों को जिले की मतदाता सूची से क्रम-रहित तरीके से (लोटरी से) चुना जाता है और ये 12 नागरिक जज की जगह पर विवाद पर अंतिम निर्णय लेते हैं और वही मान्य होता है नाकि जज का फैसला | और हर मामले के साथ 12 जूरी सदस्य बदल जाते हैं और ने १२ सदस्य का जूरी-दल आता है | जज-सिस्टम के बदले, ज्यूरी-सिस्टम इस्तमाल करने के क्या फायदे हैं और इससे सरकारी अफसर, नेता आदि का अत्याचार कैसे कम होगा इसकी विस्तृत जानकारी यह मुफ्त इ-बुक (www.prajaadheenshasan.wordpress.com) के २१ वें चैप्टर में है | जूरी सिस्टम का एक विशिष्ट फायदा जो कारखानों के लिए है वो निम्नलिखित है |

मान लीजिये कि 2-3 बड़ी कंपनियां मिलकर कोई एक क्षेत्र में व्यापार कर रही हैं और कई छोटी कम्पनियाँ उसी व्यवसाय में आती हैं | अब बड़ी कम्पनियाँ उनके ऊपर झूठा (नकली, जाली) कोर्ट-विवाद डाल सकती हैं | बड़ी कम्पनियाँ ऐसा सीधा नहीं करेंगी लेकिन वो ऐसा मजदूर संघ के नेता (Labor Union Leader) को घूस देकर या अन्य तरह से दबाव डाल कर या कोई अन्य सरकारी अफसर जैसे भ्रष्ट बिक्री कर (सेल्स-टैक्स) अफसर, भ्रष्ट पर्यावरण (Environment, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) अफसर, भ्रष्ट-एक्साइस (Excise) अफसर को घूस देकर, उनके द्वारा करेंगे | जज-सिस्टम में बड़ी कम्पनियाँ ऐसे झूठे (नकली, जाली) मामलों में, छोटी कम्पनियों को आराम से हरा देंगे और ज्यूरी-सिस्टम में यही कम १०० से १००० गुना ज्यादा मुश्किल होगा | क्यूँ और कैसे ?

मान लीजिये कि कुछ बड़ी कम्पनियाँ मिलकर १००० छोटी कंपनियो के ऊपर ५ से १० केस पूरे भारत भर में करती हैं | अब वो ५००० से १०,००० केस कुछ १३,००० निचली अदालत के जजों के पास जायेंगे, जो सुप्रीम कोर्ट के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आदेश के तहत काम करते हैं | अब बड़ी कंपनियो को सिर्फ कुछ सुप्रीम कोर्ट के जजों को ही घूस देनी पड़ेगी, जिससे सुप्रीम-कोर्ट जज कानून के व्याख्या (interpretation) का नाम देकर कुछ फैसले देंगे और फिर वो कानून के व्याख्या (interpretation) के नाम से दिए गए सारे फैसले निचली अदालत के जजों को मानने का दबाव होगा |
कुछ मामलों में, निचली अदालत के जज बड़ी कंपनियो के खिलाफ फैसला देते हैं तो फिर से अपील करके वो मामले सुप्रीम कोर्ट में आते हैं और वहाँ बड़ी कम्पनियाँ जीत जाती हैं | यह इसलिए होता है क्यूंकि भारत में सभी कोर्ट की सत्ता कुछ २५ सुप्रीम कोर्ट के जज के हाथ में होती है | और उनके साथ सांठ-गांठ करके बड़ी कम्पनियाँ भारत की सभी १३,००० निचली अदालतों पर नियंत्रण रख सकती हैं | जबकि ज्यूरी-सिस्टम में ऐसा नियंत्रण असंभव है क्यूंकि सभी ५००० से १०,००० केस कुछ ६०,००० से १२०,००० ज्यूरी सदस्यों के पास जायेंगे और उनको कोई आजीवन ज्यूरी का पेशा नहीं है और सुप्रीम कोर्ट के जज उनको स्थानांतरण (transfer) या निलंबन (suspension) या निष्कासन (expulsion) का डर दिखा कर दबाव नहीं डाल सकते और पदोन्नति (promotion) का लालच भी नहीं दे सकते | और सुप्रीम-कोर्ट में भी जज-सिस्टम की जगह पर ज्यूरी-सिस्टम का प्रस्ताव है जिससे सुप्रीम-कोर्ट जज के पास भी कोई सत्ता नहीं रहेंगी | इस तरह बड़ी कंपनियो के लिए ज्यूरी-सिस्टम में ज्यूरी को घूस देना बहुत ज्यादा मुश्किल और लगभग असंभव हो जाता है, जज-सिस्टम की तुलना में | 

संक्षिप्त में ज्यूरी-सिस्टम में, जज सिस्टम की तुलना में, छोटी कंपनियो को झूठे (नकली, जाली) मामलों में बड़ी कंपनियो से बेहतर सुरक्षा मिलेगी | तो इससे तकनीकी (इंजीनियरिंग) के स्तर पर केसे फर्क पड़ेगा ?

तकनीकी (इंजीनियरिंग) में, प्रगति नए विचारों और उत्पाद (innovations) के माध्यम से ही आती है और नए विचार-उत्पाद प्रतिस्पर्धा (competition) के माध्यम से ही आते हैं | नए विचार-उत्पाद (innovations) छोटी और बड़ी कम्पनियाँ दोनों के माध्यम से आ सकते हैं | यह नहीं होता कि छोटी कम्पनियाँ हमेंशा ज्यादा नए-विचारों वाली हैं और बड़ी कम्पनियाँ हमेंशा सुस्त हैं | हमारा प्रस्तावित कानून छोटी कंपनियो को अतिरिक्त सुरक्षा और बड़ी कंपनियो को ज्यादा सजा का प्रावधान नहीं देती हैं | लेकिन नई छोटी कम्पनियाँ ज्यादातर मामले में बड़ी कंपनियो से ज्यादा नए-विचारों-उत्पादों (innovations) वाली होती हैं क्यूंकि उन्हें ग्राहकों का भरोसा जीतने के लिए और अपने उत्पादन बेचने के लिए वर्तमान कंपनी से बराबर वाली नहीं बल्कि ज्यादा अच्छी चीज़-वस्तुओ का उत्पादन करना पड़ता है | ज्यादातर मामले में नई कम्पनियाँ बड़ी कम्पनियों की तुलना में कम अमीर और कम पहचान वाली होती हैं | और ऐसी छोटी कंपनियो के पास सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट तो क्या निचली कोर्ट के जज (जज) के साथ भी सांठ-गांठ नहीं होती है |

अब यदि कोर्ट के विवादों का समाधान करने के लिए जज-सिस्टम का इस्तमाल होता है, तो यह बड़ी कंपनियो के लिए छोटी नई कंपनियो को झूठा (नकली, जाली) कोर्ट का मामला डाल कर कुचलना काफी आसान हो जायेगा | और इस तरह तकनीकी (इंजीनियरिंग) में प्रगति नए-विचारों-उत्पादों (innovations) का आना बिलकुल बंद हो जायेगा और तकनीकी (इंजीनियरिंग) को भुगतना पड़ेगा | इसी लिए, कोई आश्चर्य नहीं की जहां-जहां पर कोर्ट में ज्यूरी-सिस्टम का इस्तमाल होता है वहाँ-वहाँ इतिहास और वर्तमान में तकनीकी (इंजीनियरिंग) और विज्ञान के क्षेत्र में काफी ज्यादा उन्नति हुई है |

भ्रष्टाचार के चलते, भारत के इंजीनियर या इंजीनियर-व्यापारी का ज्यादातर समय भारत के भ्रष्ट सरकारी अफसर जैसे कि भ्रष्ट बिक्री कर (सेल्स-टैक्स) अफसर, भ्रष्ट पर्यावरण (Environment, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) अफसर, भ्रष्ट-पोलिस अफसर, भ्रष्ट-पी.एफ. अफसर, भ्रष्ट उत्पाद कर (Excise) अफसर, भ्रष्ट आयकर अफसर, भ्रष्ट-जज और उनके रिश्तेदार वकील आदि को संभालने में ही चला जाता है | अगर इंजीनियर-व्यापारी सरकारी अफसरों को संभालने में ही अपना ज्यादातर समय देंगे, तो उच्च तकनीकी के उत्पाद (Engineering Product) को बनाने में कम समय दे पाते हैं | भारत के सभी ९९.९९% इंजीनियर-व्यापारी सभी इंजीनियरिंग मशीन और उसके अतिरिक्त पुर्जों (स्पेर पार्ट) का आयात ही करते हैं, कोई भी उसके उत्पादन पर समय ही नहीं दे पाता है |

भ्रष्टाचार के चलते, भारत में नए इंजीनियर-व्यापारी खुद का बिसनेस नहीं कर पाते हैं क्यूंकि भारत के भ्रष्ट सरकारी अफसर जैसे कि भ्रष्ट बिक्री कर (सेल्स-टैक्स) अफसर, भ्रष्ट पर्यावरण (Environment, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) अफसर, भ्रष्ट-पोलिस अफसर, भ्रष्ट-पी.एफ. अफसर, भ्रष्ट उत्पाद कर (Excise) अफसर, भ्रष्ट आयकर अफसर, भ्रष्ट-जज और उनके रिश्तेदार वकील उनको परेशान कर-कर के थका देते हैं और इतना थका देते हैं कि वो धंधा करने का विचार ही अपने दिमाग से निकल देता हैं |
अब मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ जिससे आपको पता चलेगा कि कैसे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज भी भारत के भारत के इंजीनियर-व्यापारी को व्यापार करने में बाधा डालते हैं | यह सबसे बड़ा उदाहरण है इस लिए इसके रेफेरेंस लिंक हमें मिले हैं ऐसे और भी कई उदाहरण होंगे | रिलायंस के धीरूभाई अंबानी, मुकेशभाई अंबानी और अनिल अंबानी ने भारत की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग कंपनी एल.एंड टी. को खरीदने का १९९० के आस-पास (1990s) प्रयास किया था | उस समय रिलायंस इन्डस्ट्री कच्चे तेल के खोज के व्यवसाय में नयी थी | कच्चे तेल के खोज के व्यवसाय में जरुरी सभी मशीन और उसका सभी कच्चा माल (Raw Material) वो उस समय दुनिया के सबसे बड़े धनी परिवार में से एक रोकोफेलर परिवार की कम्पनियाँ शेवरोन (Chevron) और दुपोन (DuPont) से आता था | धीरूभाई अंबानी ने सोचा होगा कि अगर वो नयी कंपनी बनाने की बजाय अगर कोई पहले से ही स्थापित कंपनी खरीद लेते हैं, तो उनको ज्यादा फायदा होगा | लेकिन रोकोफेलर परिवार को यह पसंद नहीं आया और उन्होंने अपने चमचों हाई-कोर्ट के जज और सुप्रीम-कोर्ट के जज को हुकुम करके अलग अलग तरीकों से यह खरीदने (अभिग्रहण ; Acquisition) पर रोकादेश (स्टे-आर्डर) डाल दिया | अब जख मार कर रिलायंस को शेवरोन (Chevron) और दुपोन (DuPont) मशीन के लिए कच्चा-माल और मशीन खरीदनी पड़ता है | आप रिलायंस और शेवरोन पर गूगल सर्च करोगे तो आपको उनकी पार्टनर-शिप पर बहुत सारी जानकारी मिलेगी यहाँ पर मैं आप को रिलायंस और एल. एंड टी. के अभिग्रहण (Acquisition) के रोकादेश (स्टे-आर्डर) पर कुछ रेफेरेंस लिंक देता हूँ | रिलायंस बड़ी कंपनी है इस लिए यह उदाहरण आँखों के सामने आता है | ऐसे बहुत सारे कई और उदहारण होंगे |

http://rkrishnakodali.blogspot.in/2007/04/l-t-drama-ril-take-over-of-l.html

http://businesstoday.intoday.in/story/best-ceos-india-larsen-toubro-am-naik-interview/1/21589.html

http://www.thehindubusinessline.in/2002/02/15/stories/2002021502210100.htm

http://books.google.co.in/books?id=7bbTVYIXstMC&pg=PA509&lpg=PA509&dq=reliance+l%26t+takeover&source=bl&ots=JrkmoRQNLt&sig=UuC3c6G5tn6Kb_JvBetWvBg5tV4&hl=en&sa=X&ei=S-EkUdTQJ8nPrQfUq4CwBA&sqi=2&ved=0CH0Q6AEwCQ#v=onepage&q=reliance%20l%26t%20takeover&f=false

कोर्ट को बेहतर करने के अलावा, हमें वर्तमान कानून के वो सारे निति-नियम रद्द करने होंगे जो कारखानों के कार्य में गैर-जरुरी हस्त-क्षेप करते हैं | इसी तरह के कानूनों की लंबी सूची अध्याय २१ में यह इ-बुक (www.prajaadheenshasan.wordpress.com) में दी गयी है | और ऐसे गैर-जरुरी निति-नियम रद्द करना एक बहुत लंबी प्रोसेस (प्रक्रिया) है जो टी.सी.पी. नाम के प्रस्तावित कानून से शीग्र किया जा सकता है जो सेक्सन 1.3 में यह इ-बुक (www.prajaadheenshasan.wordpress.com) में दिया गया है |

इस तरह से, भ्रष्टाचार के चलते भारतीय सेना की ताकत हररोज दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है |

(5) भारतीय सेना, भारतीय वायू-सेना और भारतीय-नौसेना की ताकत काम होने से भारतीय सेना, भारतीय वायू-सेना और भारतीय-नौसेना रूपी दीवार टूटने की संभावना है या नहीं ? है तो कितनी है ?

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की सेना कितनी कमजोर है या मजबूत है इसकी चर्चा में यह भी समझना पड़ेगा की भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को कौन-कौन कितनी कितनी मदद कर रहा है | यहाँ पर सैन्य शक्ति का मतलब सिर्फ सैनिकों की संख्या नहीं है | शक्ति का मतलब है कि सेना के पास कितना धन है, कौन कौन से अत्याधुनिक हथियार है और उनकी राशन-पानी की आपूर्ति केसी है |

पाकिस्तान और बांग्लादेश को साउदी अरब से पूर्ण वित्तीय सहायता मिल रही है | सउदी अरब भारत के सैन्य बजट से सौ गुना धन-राशि पाकिस्तान को दे सकता है | वर्तमान समय में, साउदी अरब पूरा अमेरिका के नियंत्रण में है इस लिए काफी कम वित्तीय सहाय मिल रही है | अब दूसरी जरुरी वस्तू है युद्ध सामग्री जैसे कि दारू-गोला, युद्ध-हवाई-जहाज, लेसर बोम्ब आदि. पाकिस्तान में इनमें से किसी का उत्पादन नहीं होता | पाकिस्तान इन सबके लिए चीन और अमेरिका पर निर्भर है |

अब मान लीजिये कि कोई भी परिस्थिति में, अमेरिका पाकिस्तान को भारत पर हमला करने अनुमति देता है | अमेरिका से अनुमति मिलने के बाद, पाकिस्तान को कोई रोकने वाला नहीं है और युद्ध की स्थिति में साउदी अरब और चीन दोनों पूरी तरह से पाकिस्तान को मदद करेंगे या फिर साउदी अरब और अमेरिका दोनों पूरी तरह से मदद करेंगे और साथ में ही भारत को कोई मदद नहीं करेगा | अमेरिका या चीन इन दोनों में से किसी भी एक की मदद से पाकिस्तान की सेना इतनी मजबूत हो जायेगी कि वो २४ से ४८ घंटे में कन्या-कुमारी तक पहुँच सकते हैं | यह मैं आपको डरा नहीं रहा हूँ लेकिन यही नग्न वास्तविकता है |

अगर भारत और पाकिस्तान का स्वतंत्र युद्ध हो जाए, तो भारत जीत जायेगा इसमें कोई दो राय नहीं है |

अगर भारत का पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों के साथ स्वतंत्र युद्ध हो जाए तो भी भारत जीत जायेगा इसमें भी कोई दो राय नहीं है |
लेकिन अगर अगर भारत अकेला पड़ जाए और पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों में से कोई भी एक को चीन या अमेरिका से मदद मिल जाए, तो पाकिस्तान या बाग्लादेश की सेना कन्याकुमारी तक पहुंच जाए उसमें भी दो राय नहीं है |
अगर पाकिस्तान को अमेरिका मदद करे, तो भारत को भगवान भी नहीं बचा सकते |

रूस भारत की मदद कर सकता है | लेकिन अभी रूस खुद इतना कमजोर हो गया है की उसे खुद मदद की जरुरत है | और मान लो रूस कोई छोटी या बड़ी सहायता वहाँ से हवाई-जहाज या नाव से भेजता है, तो क्या वो सहायता अमेरिका या पाकिस्तान या चीन भारत तक पहोचने देंगे ? बिलकुल नहीं |

पार्ट-2 में आगे...

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